LADNUN HISTORY

लाड़नू  का इतिहास 



महाभारत काल मे इस प्रदेश का नाम गन्धव वन था 
कालांतर मे यह प्रदेश क्रष्ण के समकालीन शिशुपाल वशीय परंपरा के ही पँवार डहलिया राजपूतो के हाथ मे था ! डहलिया चंदेल थे इस कारण इस स्थान को बूढ़ी चँदेरी नाम से जाना जाता था ! इसी के संदभ मे विक्रम की ग्यारहवी शदी मे रचित डिंगल भाषा के प्रथ्वीराज रासो के उल्लेख मे ही शिशुपाल वशीय शासित नगरी चँदेरी जो वर्तमान मे  लाड़नू नगर के नाम से जाना जाता है!











लाड़नू  किले का नामकरण :- 

चँदेरी किला मोहिल मनसूख़ की पहरेदारी मे था यह किला मिट्टी का बना हुआ था इस कारण इसे धूल का किला भी कहते थे ! मोहिल राणा इसे पक्का बनाने की सोच रहे थे ! पर यह किला बनने का नाम ही नहीं ले रहा था ! उसको दिन मे जितना बनाते वो रात को गिर जाता था  ओर यह सिलसिला तीन पीढ़ी तक चलता रहा  पर यह किला अधूरा का अधूरा ही रहा !

कुवर विक्रम सिंह का विवाह छापर हुआ ! उस समय राजपूतो मे एक रिवाज था की जवाई ससुराल मे पहली रात सोकर उठता है तो श्सुर से कुछ माग रखता है ओर वो माग पूरी नहीं होती है तब तक जवाई महलो से नीचे नहीं उतरता था ! पर विक्रम सिंह ने अपनी रानी से कहा की मेरे पास सब कुछ है मे तेरे पिता जी से क्यो मागु 
पर पत्नी के हठ के आगे किसकी चलती है जो विक्रम सिंह जी की चलती तब विक्रम सिंह जी बोले की तू ही बताओ की मे क्या मागु तब उसकी पत्नी बोली की आपका किला पूरा नहीं हो रहा इतने मे विक्रम सिंह बीच मे बोल जाते है की इसका उपाय भी तो नहीं है ?
रानी बीच मे ही बोल पड़ी - यदी आप अपना किला पूरा करना चाहते हो तो इस पंडित जी को माग लेना जिंहोने कल अपना विवहा करवाया था वे सिद्ध पुरुष है ! प्रात काल ससुर ने माग- देही का आग्रह किया ! विक्रम सिंह जी बोले की ईश्वर की अनुकंपा से सब कुछ है ! बस आप तो अपना आशीवाद ही दे दीजिये!
ससुर जी हठ करने लगे की आपको कुछ तो मागना ही होगा अंत मे विक्रम सिंह ने कहा की आपकी इतनी ही इच्छा है तो कल चवरी मे विवाह करवाने वाले  पंडित जी को हमे दे दीजिए !
मांग बड़ी कठिन थी पर उसको पूरा तो करना ही था पर  पंडित जी कोई चीज तो थी नहीं उन्होने माना कर दिया  अंत मे  पंडित जी को मनाया गया तो वो मान गए पर उन्होने एक शर्त रखी की मेरे साथ माताजी ओर भेरुजी भी जाएगे ! यह भी शर्त पूरी की गई  पंडित के साथ माता जी ओर भैरुजी को भी लाड़नू लाया गया 
ओर अगले दिन किले मे माता जी ओर भेरु जी की स्थापना की गई ओर पंडितजी ने अनुष्ठान किया ओर कुछ ही दिनो मे किला बनकर तैयार हो गया था फिर इस किले का नागल पंडित जी ने करवाया था जिस कारण इस किले का नाम उनके नाम पर ही रख दिया गया था !

पंडित जी पारीख जाति के थे पंडित जी तीन भाई थे लाड़ोजी , हेमाजी ओर पावोजी इन तीनों के नाम पर अलग अलग जगह का नाम पड़ा लाड़ो के नाम पर  लाड़नू  हेमजी के नाम पर हेमा बावड़ी ओर पावो जी के नाम पर पावोलाव तालाब बनाया गया ! जिस स्थान पर लाड़ोजी रहते थे आज भी उनके वंशज रहते है जिसे परीखों के बास के नाम से जानते है