Sunday 5 January 2014

शीत की प्रीत


आज शीत ने फिर मुझ से प्रीत की है 
क्यो उससे फिर अनुराग बढ़ता जा रहा है




यौवन स्नेह सी बांध रही है यह शीत लहर मुझे   
ओर फिर से चहतों का विस्तार बढ़ता जा रहा है    

धुंध धीरे धीरे अपने आगोश मे ले रही  
जेसे बाहो की परिधि हो मेरी माशूका की 


आज सूरज और सर्द में देखो लगी है होड़ सी जाने.... 
ओर धीर धीरे धुंध को डसने लगी रोशनी सूरज की 

 ठंडी हवाए फिर धूप के गर्म सोल मे बदल गयी 
ओर फ़िज़ाओं ने उठा दी धुंध मे ख़्वाबों की इक चादर सी