Thursday 7 March 2013

सोशल इंजीनियरिंग


यह सब वोट बैंक  के चक्कर मे ऐसे फेसले लिए जा रहे है जिससे  भारतीय संस्क्रती अपने अस्तित्व की लड़ाई अपनों से ही लड़ रही, किताबो में पढ़ा है की कई देशो की संस्क्रती विलुप्त होने का कारण बाहरी देशो का आक्रमण या फिर और बाहरी कारण था, पर भारत देश तो अपने देश के कर्णधारो के बचकाने फेसले और नीतियों के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है चुनावी साल में आखिरी बजट पेश करते हुए गहलोत साहब ने सोशल इंजीनियरिंग के अपने नायाब फॉर्मूले का सहारा लिया है।

मेरा मानना है की  विवाह केवल मात्र एक भोग का नाम नहीं है, इससे पति पत्नी के . Genetic एवं वंश-परम्परा के गुणों का मिलान नहीं होता ! समान गोत्र में या बिना सोचे समझे किसी भी जाति में विवाह हो रहे हैं! कृषि जगत में नस्ल देखी जाति है. तो फिर हम तो इन्सान है किसी भी जाति से केसे शादी कर सकते है अगर करते है तो फिर संतान विकर्त होती है इतिहास मे एसे बहुत से उधारण है :-
 
विश्रवा की आसुरिक स्वभाव वाली पत्नी ने गलत काल में, मात्र कामवश ( न कि ऊर्ध्व चिंतन में निमग्न होकर) विश्रवा से मिलन किया. इसी कारण एक आसुरिक प्रवृत्ति से संपन्न आत्मा ने वहाँ शरीर ग्रहण किया. वह रावण था.ऐसे विवाह से उत्पन्न संतान जन्मजात रूप से सत्-विरोधी होती है, भले ही वह कितनी भी बुद्धिमान अथवा शक्तिशाली क्यों न हो. किसी समाज में यदि एक-दो विवाह भी ऐसा हो जाता है तो वह समाज नष्ट होता ही होता है. इस संतान का सुधार असंभव होता है ! वंशानुगत गुण एक सच्चाई है जिसे नकारा नहीं जा सकता। रक्त की शुद्धता व DNA के रूप में अब वंशानुगत लक्षणो को अब विज्ञानं भी मानता है। पर यह नेताजी कब मानेगे इस सचाई को ?




Sunday 3 March 2013

जिन्दगी

बादल की खिड़की से सूरज ने आँखें खोलीं,
 
सिरहाने चढ़ एक चुलबुली 
 
कोयल बोली ...
 
छोड़ दो नींद की अंगड़ाइयाँ,
 
चलो,अब उठो, करनी है आज एक और 
 
जीवन की यात्रा।

रोज़ की तरह  थके पांव,
 
दोड़ती जिन्दगी पार करनी है 

यह सूरज भी मुझे अकेला छोड़कर 
 
हर रोज ही,चुपके-चुपके भाग जाता है?

आजका दिन दौड़ती हुई एक सड़क
 
जो लोटकर कभी  नहीं आएगा,