Sunday 9 June 2013

शादी

घर में शादी का कार्ड देखते ही मन में एक अलग सा ही उत्साह बन जाता है पड़ोस मे  सिंह साब के छोटे लड़के की शादी है, आज कल एक चलन ही हो गया है सभी को कार्ड देने का। कार्ड देखकर हमें अपनी शादी के दिन याद आ गए। फिर हमने अपनी भावनाओ को रोका और कार्ड को पढने लग गये,चाहे वर और वधु खुबसुरत हो ना हो कार्ड सुन्दर सा छपवाया जाता है, उसमे भी  किसी पहुचे  हुए आदमी या फिर किसी नेताजी  को मुख्य  अथिति के रूप मे बड़े बड़े शब्दों मे लिखा रहता है, हमने श्रीमती से पूछा किसकी  शादी का कार्ड है तो वो जुंझलाकर बोली की आप अनपढ़  तो हो नहीं जो कार्ड नहीं पढ़ सकते हो, अगले दिन ही श्रीमती जी सुबह सुबह ही सज धज के तेयार हो गये शादी मे जाने के लिए हमने कहा की शादी सायं की आप के पेरों मे तो अभी ही घूघरू लग गये है।

हम लोग सही समय पर शादी मे पहुच गये । दूल्हा सध-धज कर तैयार था इतने मे किसी ने कहा की छोटे वाले जीजाजी नाराज़ होकर बैठ गये है उनको रेल्वे स्टेशन पर लेने के लिए कोई आया नहीं था इसके लिए वो कोपभवन मे चले गये। घर के सभी लोग उन्हे मनाने मे लग गये बड़ी जतन के बाद वो राजी हुए  फिर बारात का प्रस्थान हुआ दूल्हे के आगे सभी नाचते हुए चल रहे जिसको नाच नहीं आता वो भी हाथ पेर मारते रहते है जो शराब के नशे मे है उनका तो कहना ही क्या उनका एक पैर पाकिस्तान जा रहा है तो दूसरा श्रीलका जा रहा है आज कल के युवा बिना शराब के तो शादी मे आते ही नहीं है। खेर कोई बात नहीं आज कल शराब तो एक फेशन सा ही बन गया है दूल्हे के पास मे खड़े दूल्हे के जीजा इस इंतजार मे है की कोई इनको भी नाचने के लिए बोले वो भी अपना हुनर दिखाए।












नाचते नाचते हम लोग समाहारों स्थल पर पहुचे ओर पहुचते ही सभी लोग खाने पर टूट पड़े क्या बच्चे ओर क्या बड़े जैसे खाना खत्म होने वाला हो एक आंटी जी ने प्लेट को इतना भर लिया जैसे दूसरे बार लेना मना हो। इसका  कारण यह भी है की खाने की स्टोंल पर लंबी लंबी कतार लगी रहती है इसके लिए एक बार मे ही सब ले कर काम तमाम कर दिया जाता है। चाट पकोड़ी के स्टॉल पर तो सिर्फ बच्चो का ही कब्जा  रहता है। हमे भी विचार किया की अब खाना खा ली लिया जाए बरातियों को तो अच्छा खाना मिल जाए ओर क्या चाहिए मे खाना खा रहा था इतने मे शोर सुनाई दिया मेने देखा की सिंह साब लड़की के पिता जी से ज़ोर से  चिल्ला कर बात कर रहे थे की आपने मारुति देने की बात की थी वो कहा पर है एक लाख नगद देने की बात थी उसने भी कम है मेरा बेटा प्राइवेट कंपनी मे बाबू है ओर पूरे 40 हजार महिना पगार लेता है इतने मे दूल्हे के फूफा जी बीच मे आ गये ओर उन्होने बात को संभाला ओर उनको शांत किया। पर सिंह साब कहने लगे की अपने ही समाज के राम सिंह के लड़के के शादी मे कितना धन आया था लड़का छोटी मोटी नोकरी करता है मेरी तो नाक ही कट जाएगी मेरे सारे अरमानो पर पानी फेर दिया है। इतने मे लड़की के बाप ने बोला की मेरी एक एफ़ डी पूरी होने वाली है तब आपको मे दे दुगा अभी आप शांत रहो ओर भी लोगो ने सिंह साब को समझाया की लड़की घर खराने की है ओर पढ़ी लिखी है। सिंह साब ने अपने अरमानो को दबाते हुए जुंझला कर  चले गये। मे भी खाना खा कर अपने घर की तरफ यह सोचते सोचते चला गया की सिंह साब के भी एक लड़की है जो अभी कुँवारी है

" गजेंद्र सिंह रायधना" 



3 comments:

Rajput said...

आजकल लड़के की कीमत का फेरों के वक्त पुनर्मूल्यांकन होता है । शादी न हुई चलती फिरती दुकान हो गई .

Dakshta Society said...

आपने अच्छा प्रयास किया है बना , ये मुख्य सामाजिक समस्या है सही मे लड़के की कीमत लगाई जाती है अब भी । लेकिन मेरे विचार से अब ये कुछ कम हुई है जिसके कई कारण हो सकते हैं शायद लड़कियों मे शिक्षा के कारण जागृति आई है या परिवार के बड़े बुजुर्गो ने भी नई जेनेरेशन से कुछ समझोता कर लिया है। लेकिन पूरी तरह से खात्मा नहीं हुआ इस समस्या का।

nayee dunia said...

ऐसा ही होता है ...चोरी छुपे हो या खुले आम हो ....दुल्हे को अपनी कीमत लगाने में ही शान नज़र आती है

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