Tuesday 14 May 2013

फेसबुक संसार



दुनिया मे जब से फेसबुक ने जन्म लिया है जब से ही  उसने अपना एक अलग समाज का निर्माण कर लिया है इस समाज मे छोटे बड़े अमीर गरीब हर धर्म के लोगो को बराबर का स्थान मिला हुआ है ओर इस संसार मे रहने वाले फेसबुकिया कई प्रकार के होते है जेसे की पिछड़े हुए फेसबुकिये यह यह कभी-कबार भूले भटके आ जाते है जो अपनी उपस्थ्ति दर्ज कवाकर फिर 15-20 दिनो के लिए अंतर्ध्यान हो जाते है इन से बढकर सामान्य जाति के फेसबुकिए होते है जो इस संसार मे रुक रुक कर पाकिस्तानी सेना की तरह घुसपेठ करते रहते है।
 कभी हेलो हाय करते रहते है कुछ कोमेंट और लायक करके वापस अपने बंकर मे छिप जाते है,और एक होते है उच्च कोटि के फेस्बुकीय जिनके कारण यह संसार बिना रुके चलता रहता है यह है जो इस संसार को चमका रहे है,क्यों की इनका उठाना बेठना रोना धोना खाना पिना सब इस संसार मे ही होता है इनको फेसबुक के अलावा कोई और बुक अछी नहीं लगती है अगर कोई और बुक पढ़ते तो आज कोई अच्छी सरकारी नोकरी मे होते, चलो कोई बात नहीं, यह इतने कट्टर फेस्बुकिया किसी के मरने की खबर को भी लायक करते है।

 इस संसार मे भांति भांति के लोग रहते है उसी प्रकार फेसबुक रूपी संसार मे भी रहते है, अगर महिलाये तो कोई बात लिख दे तो लायक और कोमेंट की बरसात हो जाती है, पर लाइक करने वालों को पता नहीं की यह नारी नहीं नर है बस लायक करते रहते है।

 इस जगत की तरह फेसबुक जगत मे भी नकली और ठग लोग भरे पड़े है क्या नेता और अभिनेता सब इस समाज मे अपना एक रुतबा बना रखा है नेताजी को लिखना पढना नहीं आता हो पर फेसबुक पर तो खता होना ही चाहिय चाहे उसे उनका P.A ही चलाये।   
असली फेसबुक की पूजा किसी योगी के तप से भी कठीन होता है। अगर कोई स्टेट्स पर कोई भी लायक और कमेन्ट नहीं आता है,  तो दोस्तों को फोन किया जाता है अगर फिर भी कुछ नहीं होता तो लंच क्या और डिनर क्या सब उनके लिए हराम हो जाते है। अगर एक दो कंमेंट आ जाते है तो उनका फेसबुक संसार मे होना सफल हो जाता है फिर दुसरो के स्टेट्स भी लायक करना पड़ता है इस संसार की तरह फेसबुक संसार मे भी लेने के देने है। इतने मे ही हरी बती भी टीम टीम करने लगी तो उसको भी जवाब देना पड़ता है। 

इश्वर के बनाये संसार और आदमी के बनाये फेसबुक संसार मे बहुत समानता है कुछ लोग ऐसे होते है जो दुसरो पर निर्भर रहते है पता नहीं कहा कहा से गजले गीत स्टेट्स और पता नहीं क्या क्या चुरा कर ले आते जिसे हम वास्तविक संसार मे चोर कहते है पर फेसबुक संसार मे क्या कहते है, इन लोगो की संख्या इस संसार मे भी बढती जा रही है तो फेसबुक संसार पीछे क्यों रहे।  

अब तो फेसबुक मे खाता नहीं हो तो उसको गाव का जाहिल और गवार समझा जाता है, बेंक मे खाता हो न हो फेसबुक मे होना जरूरी हो गया है। अगर किसी का खाता नहीं हो और उसे कोई पाच आदमियों के बीच मे पूछ लिया जाये की आपका फेसबुक मे खाता है की नहीं अगर उसका जवाब ना हो तो उसको ओछी नजरों से देखा जाता है ओर वो आदमी शर्मिदगी महसूस करता है,मेरा तो है आपका है या नहीं ? इस संसार की तरह फेसबुक संसार भी अनंत है ओर धीरे धीरे अपनी सीमाओ को बढ़ा रहा है। बाकी का वार्तान्त अगले भाग मे 

' जय हो फेसबुक संसार की'

Sunday 5 May 2013

लाड़नू का इतिहास

 लाड़नू  का इतिहास 

महाभारत काल मे इस प्रदेश का नाम गन्धव वन था 
कालांतर मे यह प्रदेश क्रष्ण के समकालीन शिशुपाल वशीय परंपरा के ही पँवार डहलिया राजपूतो के हाथ मे था ! डहलिया चंदेल थे इस कारण इस स्थान को बूढ़ी चँदेरी नाम से जाना जाता था ! इसी के संदभ मे विक्रम की ग्यारहवी शदी मे रचित डिंगल भाषा के प्रथ्वीराज रासो के उल्लेख मे ही शिशुपाल वशीय शासित नगरी चँदेरी जो वर्तमान मे  लाड़नू नगर के नाम से जाना जाता है!






लाड़नू  किले का नामकरण :- 

चँदेरी किला मोहिल मनसूख़ की पहरेदारी मे था यह किला मिट्टी का बना हुआ था इस कारण इसे धूल का किला भी कहते थे ! मोहिल राणा इसे पक्का बनाने की सोच रहे थे ! पर यह किला बनने का नाम ही नहीं ले रहा था ! उसको दिन मे जितना बनाते वो रात को गिर जाता था  ओर यह सिलसिला तीन पीढ़ी तक चलता रहा  पर यह किला अधूरा का अधूरा ही रहा !

कुवर विक्रम सिंह का विवाह छापर हुआ ! उस समय राजपूतो मे एक रिवाज था की जवाई ससुराल मे पहली रात सोकर उठता है तो श्सुर से कुछ माग रखता है ओर वो माग पूरी नहीं होती है तब तक जवाई महलो से नीचे नहीं उतरता था ! पर विक्रम सिंह ने अपनी रानी से कहा की मेरे पास सब कुछ है मे तेरे पिता जी से क्यो मागु 
पर पत्नी के हठ के आगे किसकी चलती है जो विक्रम सिंह जी की चलती तब विक्रम सिंह जी बोले की तू ही बताओ की मे क्या मागु तब उसकी पत्नी बोली की आपका किला पूरा नहीं हो रहा इतने मे विक्रम सिंह बीच मे बोल जाते है की इसका उपाय भी तो नहीं है ?
रानी बीच मे ही बोल पड़ी - यदी आप अपना किला पूरा करना चाहते हो तो इस पंडित जी को माग लेना जिंहोने कल अपना विवहा करवाया था वे सिद्ध पुरुष है ! प्रात काल ससुर ने माग- देही का आग्रह किया ! विक्रम सिंह जी बोले की ईश्वर की अनुकंपा से सब कुछ है ! बस आप तो अपना आशीवाद ही दे दीजिये!
ससुर जी हठ करने लगे की आपको कुछ तो मागना ही होगा अंत मे विक्रम सिंह ने कहा की आपकी इतनी ही इच्छा है तो कल चवरी मे विवाह करवाने वाले  पंडित जी को हमे दे दीजिए !
मांग बड़ी कठिन थी पर उसको पूरा तो करना ही था पर  पंडित जी कोई चीज तो थी नहीं उन्होने माना कर दिया  अंत मे  पंडित जी को मनाया गया तो वो मान गए पर उन्होने एक शर्त रखी की मेरे साथ माताजी ओर भेरुजी भी जाएगे ! यह भी शर्त पूरी की गई  पंडित के साथ माता जी ओर भैरुजी को भी लाड़नू लाया गया 
ओर अगले दिन किले मे माता जी ओर भेरु जी की स्थापना की गई ओर पंडितजी ने अनुष्ठान किया ओर कुछ ही दिनो मे किला बनकर तैयार हो गया था फिर इस किले का नागल पंडित जी ने करवाया था जिस कारण इस किले का नाम उनके नाम पर ही रख दिया गया था !

पंडित जी पारीख जाति के थे पंडित जी तीन भाई थे लाड़ोजी , हेमाजी ओर पावोजी इन तीनों के नाम पर अलग अलग जगह का नाम पड़ा लाड़ो के नाम पर  लाड़नू  हेमजी के नाम पर हेमा बावड़ी ओर पावो जी के नाम पर पावोलाव तालाब बनाया गया ! जिस स्थान पर लाड़ोजी रहते थे आज भी उनके वंशज रहते है जिसे परीखों के बास के नाम से जानते है