Wednesday 25 July 2012

शहीद का आखरी ख़त

शहीद का आखरी ख़त 


आज कारगिल विजय दिवस है, उनकी याद मे आज पूरा देश उनको नमन करता है 
एक छोटी सी कविता के माध्म से इन ५२७ वीर रणबंकोरो को मेरा सलाम !

साथी अगर तुम घर पहुच सको तो मेरा हाल बता देना  ?
हाल अगर पूछे माता  तो सुनी कोख दिखा देना ?
साथी अगर तुम घर पहुच सको तो .........
हाल अगर पूछे बहिना तो सुनी कलाई दिखा देना 
साथी अगर तुम घर पहुच सको तो मेरा हाल बता देना  
हाल अगर पत्नी पूछे तो सुनी मांग दिखा देना 
साथी अगर तुम घर पहुच सको तो मेरा हाल बता देना  

हाल अगर पूछे बेटा तो सुना आचल दिखा देना 
साथी अगर तुम घर पहुच सको तो मेरा हाल बता देना  

हाल अगर पूछे सखा तो खाली खाली मन दिखा देना 
साथी अगर तुम घर पहुच सको तो मेरा हाल बता देना  

हाल अगर पूछे गावंवाले तो खाली कफ़न दिखा देना 
साथी अगर तुम घर पहुच सको तो मेरा हाल बता देना  ?


वो तो चले गए पर जाते जाते अपना सब कुछ देश को समर्पित कर गए 
उनके लिए देश सेवा से बड़ा कोई फर्ज़ नहीं है घर परिवार बाद मे है पहले भारत माता है, मे सभी सहिदो को सलाम करता हु  जोँ देश की खातिर अपने सबसे बङेँ परिवार व भारत माता के लिए अपने प्राण हँसते हँसते न्यौँछावर कर देते है 















Wednesday 18 July 2012

मेरा जुर्म

      



     मैने बेटी बन जन्म लीया, यह मेरा जुर्म...?
      कोई भी नहीं सुनेगा मेरी चीख-पुकार,

      कोई नहीं बढ़ाएगा अपना हाथ मेरी  तरफ,
      मैने बेटी बन जन्म लीया, यह मेरा जुर्म...?

      उनको सुख फूलों के और हमें दर्द के कांटे.
     मैने बेटी बन जन्म लीया, यह मेरा जुर्म...?

    जन्मते ही तुम तो कर देते हो पराई,
    मैने बेटी बन जन्म लीया,........

    मै तो कोरा सा एक पन्ना जिस् पर पल मे धूल नजर आये,
    मैने बेटी बन जन्म लीया, यह मेरा जुर्म...?

    मे माँ भी हु बहिन भी हु और आगे जाकर पत्नी भी,
    मैने बेटी बन जन्म लीया, यह मेरा जुर्म...?

    अपने लिए तो जीना सिखाया ही नहीं माँ ने.......
    मैने बेटी बन जन्म लीया, यह मेरा जुर्म...?

   मुझे देवी की उपमा दे दी ताकि अपने उत्पीडन का विरोध ना करू ..... 
   मैने बेटी बन जन्म लीया, यह मेरा जुर्म...?


   तुम तो वही कर रहे हो जो पहले से करते आ रहे हो ...
  पर मे बदलाव लाने की कोशिश मे अपना वजूद खो रही हु  

          
             "बस मेरा कसूर यही है की मैने बेटी बन जन्म लीया"

                           छायाचित्र युवा नागौर 

Friday 13 July 2012

राजस्थानी लड़का

खिला एक फूल फिर इन रेगिस्थानो में.
मुरझाने फिर चला दिल्ली की गलियों में.
स्नातक की डिग्री हाथ में थामे निकल गया.
फिर एक राजस्थानी लड़का जिंदा लांश बन गया.......

... खो गया इस भागती भीड़ में वो.
रोज़ मारा बस के धक्कों में वो.
दिन है या रात वो भूल गया.
फिर एक राजस्थानी लड़का जिंदा लांश बन गया......

देर से रात घर आता है पर कोई टोकता नहीं.
भूख लगती है उसे पर माँ अब आवाज लगाती नहीं.
कितने दिन केवल चाय पीकर वो सोता गया.
फिर एक राजस्थानी लड़का जिंदा लांश बन गया......

अब साल में चार दिन घर जाता है वो.
सारी खुशियाँ घर से समेट लाता है वो.
अपने घर में अब वो मेहमान बन गया
फिर एक राजस्थानी लड़का जिंदा लांश बन गया......

मिलजाए कोई गाँव का तो हँसे लेता है वो.
पूरी अनजानी भीड़ में उसे अपना लगता है वो.
राजस्थानी गाने सुने तो उदास होता गया..
फिर एक राजस्थानी लड़का जिंदा लांश बन गया......

न जाने कितने फूल रेगिस्थान के यूँ ही मुरझाते हैं..
नौकरी के बाज़ार में वो बिक जाते है.
रोते हैं माली रोता है चमन..
राजस्थान का फूल राजस्थान में महकेगा की नहीं...............?



प्रस्तुती:- रंगीलो राजस्थान 

Wednesday 4 July 2012

मेरा गाँव

यह शहर तो मुझे खत्म ही कर ही देते, पर मे ज़िन्दा हु आज भी,
यहाँ की कड़ी धूप में वो बरगद की छाँव मुझमे ज़िन्दा है,
यहाँ के भीड़ भाडा मे तालाब की पाल की वो शांति आज भी जिन्दा है ,
यहाँ की वस्त जिन्दगी मे गावं की सुबह आज भी जिन्दा है,
यहाँ की दिन भर की थकान मे माँ का प्यार आज भी जिन्दा है,
यहाँ के गंदे नालो मे गावं की नदी का पानी  आज भी जिन्दा है,
यहाँ के बगीचों में गावं के खेतो की  महक आज भी जिन्दा है,
यहाँ के खाने मे माँ की हाथ की रोटी की महक आज भी जिन्दा है,
यहाँ  ज़िन्दा हूँ क्योंकि मेरा गाँव मुझमे में ज़िन्दा है,
photo by :-  Chandan Singh Bhati













आज गावं अपना अस्तित्व की लडाई लड़ रहे है ,
       

 आज के परिवेश  मे लोग आजीविका चलाने के लिए गावो से पलायन करके शहर मे  जाते है ! यह कविता उन्ही मे से एक के मन के भाव है !