Saturday 23 July 2011

तुलसी माला की महिमा

तुलसी
एक सत्य घटना

राजस्थान में जयपुर के पास एक इलाका है – लदाणा। पहले वह एक छोटी सी रियासत थी। उसका राजा एक बार शाम के समय बैठा हुआ था। उसका एक मुसलमान नौकर किसी काम से वहाँ आया। राजा की दृष्टि अचानक उसके गले में पड़ी तुलसी की माला पर गयी। राजा ने चकित होकर पूछाः

"क्या बात है, क्या तू हिन्दू बन गया है ?"

"नहीं, हिन्दू नहीं बना हूँ।"

"तो फिर तुलसी की माला क्यों डाल रखी है ?"

"राजासाहब ! तुलसी की माला की बड़ी महिमा है।"

"क्या महिमा है ?"

"राजासाहब ! मैं आपको एक सत्य घटना सुनाता हूँ। एक बार मैं अपने ननिहाल जा रहा था। सूरज ढलने को था। इतने में मुझे दो छाया-पुरुष दिखाई दिये, जिनको हिन्दू लोग यमदूत बोलते हैं। उनकी डरावनी आकृति देखकर मैं घबरा गया। तब उन्होंने कहाः

"तेरी मौत नहीं है। अभी एक युवक किसान बैलगाड़ी भगाता-भगाता आयेगा। यह जो गड्ढा है उसमें उसकी बैलगाड़ी का पहिया फँसेगा और बैलों के कंधे पर रखा जुआ टूट जायेगा। बैलों को प्रेरित करके हम उद्दण्ड बनायेंगे, तब उनमें से जो दायीं ओर का बैल होगा, वह विशेष उद्दण्ड होकर युवक किसान के पेट में अपना सींग घुसा देगा और इसी निमित्त से उसकी मृत्यु हो जायेगी। हम उसी का जीवात्मा लेने आये हैं।"

राजासाहब ! खुदा की कसम, मैंने उन यमदूतों से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि 'यह घटना देखने की मुझे इजाजत मिल जाय।' उन्होंने इजाजत दे दी और मैं दूर एक पेड़ के पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में उस कच्चे रास्ते से बैलगाड़ी दौड़ती हुई आयी और जैसा उन्होंने कहा था ठीक वैसे ही बैलगाड़ी को झटका लगा, बैल उत्तेजित हुए, युवक किसान उन पर नियंत्रण पाने में असफल रहा। बैल धक्का मारते-मारते उसे दूर ले गये और बुरी तरह से उसके पेट में सींग घुसेड़ दिया और वह मर गया।"

राजाः "फिर क्या हुआ ?"

नौकरः "हजूर ! लड़के की मौत के बाद मैं पेड़ की ओट से बाहर आया और दूतों से पूछाः 'इसकी रूह (जीवात्मा) कहाँ है, कैसी है ?"

वे बोलेः 'वह जीव हमारे हाथ नहीं आया। मृत्यु तो जिस निमित्त से थी, हुई किंतु वहाँ हुई जहाँ तुलसी का पौधा था। जहाँ तुलसी होती है वहाँ मृत्यु होने पर जीव भगवान श्रीहरि के धाम में जाता है। पार्षद आकर उसे ले जाते हैं।'

हुजूर ! तबसे मुझे ऐसा हुआ कि मरने के बाद मैं बिहिश्त में जाऊँगा कि दोजख में यह मुझे पता नहीं, इसले तुलसी की माला तो पहन लूँ ताकि कम से कम आपके भगवान नारायण के धाम में जाने का तो मौका मिल ही जायेगा और तभी से मैं तुलसी की माला पहनने लगा।'

कैसी दिव्य महिमा है तुलसी-माला धारण करने की ! इसीलिए हिन्दुओं में किसी का अंत समय उपस्थित होने पर उसके मुख में तुलसी का पत्ता और गंगाजल डाला जाता है, ताकि जीव की सदगति हो जाय।

Friday 22 July 2011

नफ़रत मत करना मां

उठ मां,
मुझ से दो बातें करले
नो माह के सफर को
तीन माह में विराम
देने का निर्णय कर
तू चैन की नींद सोई है,
सच मान तेरे इस निर्णय से
तेरी यह बिटिया बहुत रोई है,
नन्ही सी अपनी अजन्मी बिटिया के
टुकड़े टुकड़े करवा
अपनी कोख उजाड़ दोगी!
सुन मां,
बस इतना कर देना
उन टुकडों को जोड़ कर
इक कफ़न दे देना,
ज़िन्दगी ना पा सकी
तेरे आँगन की चिड़िया
मौत तो अच्छी दे देना,
साँसे ना दे सकी ऐ मां,मुझे तू
मृत रूप में
अपने अंश को देख तो लेना
आख़िर
तेरा खून,तेरी सांसों की सरगम हूँ,
ऐ मां,मुझसे इतनी नफरत ना करना

Tuesday 19 July 2011

गणगोर का मेला

गणगोर का मेला:- 





गणगोर   माता 
गणगोर का मेला निम्बी जोधन मे बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है , होली के दुसरे दिन से गाव की लड़कीया गणगोर माता की १५ दिन तक पूजा करती है बाद मे मेला लगता है और गोर और ईशर की सवारी निकलती है और बैंड बाजे के साथ महिलाये धूम धाम से गढ़ से निकल कर गीत गाती मुख्य मार्गो से हो कर बस स्टैंड स्तिथ हुनमान जी के मंदिर मे आती है गावं में बहुत बड़ा मेला लगता है जिसमे सभी प्रकार की दुकाने लगती
है


गणगोर का गीत:-
पुजन्देयो गणगोर भवर सा

Saturday 16 July 2011

सावण री राम राम

बिजली सी चिमकै चेतन में याद कर्यां बै बांता।
पलकां झपक्या करती कोनी, घुली धुली सी'र रातां।।
मन नादीदो नैण तिसाया, कान तरसता नेह।
चातक कोई तकै उड़िकै, बिन मौसम को मेह।।
सांस सांम में भरी गुदगुदी, हो री मन में खाटी।
रै सावण ले आव सजन नै, वाह भई शेखावाटी।।