Saturday 31 December 2011

समय


समय अमूल्य है । जिंदगी में एक वर्ष का क्या महत्त्व है ? यह इसी वर्ष फेल हुये विद्यार्थी से पूछिये । एक माह का महत्त्व जानना हो तो उस माँ से पूछिये जिसने अठ-मासिया बच्चे को जन्म दिया है । सात दिन का महत्त्व जानने के लिये किसी साप्ताहिक पत्र के सम्पादक से मिलिये । एक दिन का महत्त्व वह दिहाडी मजदूर बता सकता है जिसे आज मजदूरी नहीं मिली है । एक घंटे का महत्त्वजानना है तो सिकन्दर से पूछिये जिसने आधा राज...्य देकर एक घंटे मौत को टालने का आग्रह किया था । एक मिनिट का महत्त्व उस भाग्यशाली से पूछिये जो वर्ल्ड-ट्रेड सेन्टर की इमारत गिरने से ठीक एक मिनिट पहले ही बाहर सुरक्षित निकला था । अब बचा एक सैकंड। तो एक सैकंड का महत्त्व उस धावक से पूछिये जो इसी एक सैकंड की वजह से स्वर्ण पदक पाते पाते रजतपदक पर रह गया हैनव वर्ष आप सभी के लिए नई चेतना , ऊर्जा , जोश , लाभ , प्रगति व उन्नति लेकर आये ! इसी आशा के साथ आप का अपना गजेन्द्र सिंह रायधना ...


Friday 30 December 2011

मेरा फ़र्ज़

एक बहुत बड़ा पेड़ था जिसपर हज़ारों पक्षी रोज़ अपना बसेरा करते थे. किसी दिन उस पेड़ में आग लग गयी…तथापि पक्षियों ने उसी पेड़ पर रहते हुए जल मरने का निर्णय लिय…. कवि यह सब देख रहा है …. पक्षियों से पूछता है–आग लगी इस वृक्ष में जरन लगे सब पात
तुम पंछी क्यों जरत हौ…. जब पंख तुम्हारे पास
जलते जलते पक्षियों ने अपनी भावनाओं को कुछ इस तरह से व्यक्त किया -
फल खाए इस वृक्ष के गंदे कीन्हें पात….
अब फ़र्ज़ हमारा यही है कि जले इसी के साथ
भारत वर्ष कभी बलिदानियों और वीरों से खाली नहीं रहा है… सुख समृद्धि और आज़ादी ने हमारी प्राथमिकताएं बदल दी हैं. हम राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भूल जाते हैं. विदेशी आक्रान्ताओं और अपने घर के भेदियों से इस देश का सीना बार बार छलनी किया गया. इसकी अस्मिता पर बार बार दाग लगाने की कोशिश की गयी किन्तु भारत सदैव अक्षुण्ण रहा –


****** जय हिंद *******

Sunday 18 December 2011

मेरा गावं :- रायधना

गावं मे स्थित गोगामेडी 
 रायधना इसे आज कल नया नाम मिल गया है राइ का बाग़ ! नाम के अनुरूप यहाँ पर कुछ भी नहीं है ! आज के युग से कई साल पीछे चल रहा है !
मेरा गावं नागौर जिले की सीमा पर है यह मान लीजिये की आखरी गावं है ! इसके बुरब   दिशा मे  सीकर जिले की सीमा लग जाती है और उतर दिशा मे चुरू जिले की सीमा  आ जाती  है! यह गावं नागौर से अलग थलग पड़ता है इस कारण इस गावं का विकास होने का तो सवाल ही नहीं है! लगभग लोग जानते ही नहीं है इस गावं को ! यहाँ से नागौर की दुरी ८५ किलोमीटर है ! यातायात की बात करे तो यहाँ पर राजस्थान राज्य पथ परिवन निगम की कोई बस सेवा नहीं है! एक या दो निजी बस चलती है ! यहाँ पर पेयजल के लिए सीकर जिले के नेछ्वा कस्बे से पानी आता है वो भी फोलोरिड युक्त ! स्कूल के नाम पर यहाँ पर परामरी स्कूल है उसमे भी ५ से १० छात्र है अभी एक बालिका विधालय भी बना है उसका भी यही हाल है यहाँ के बच्चे आज भी  कोठारी  स्कूल या फिर कोई निजी संस्थान मे पढने जाते है रोज़ १० किलोमीटर पैदल जाते है ! अब चिकित्सा की बात कर लेते है! यहाँ पर सम्दायक सवास्थ्य केंद्र तो है पर वहा पर आज तक मुझे तो कोई कर्मचारी दिखाई  नहीं दिया आज भी लोग समीप के कस्बे गनेडी ही जाते है वैध जी के पास या फिर सीकर जाते है नागौर और लाडनू तो जा ही नहीं सकते वहा के लिए साधन ही नहीं है! बस तो चलती नहीं है !  इस गावं ने  सेना में चाहे  वो थल सेना हो या फिर जल सेना तीनो सेनाओं मे निरंतर सेवा दी है ! यहाँ के लोग हर विभाग मे सेवा देते आ रहे है !  इस गावं का आज पिछड़े  का सबसे बड़ा कारण राजनीती  पिछड़ापन है!
यहाँ पर नेता जी सिर्फ चुनाव के टाइम पर ही आते  है बाद मे वो ५ साल तक इस गावं के लिए  अंतर्धान हो जाते है !  यह मेरे निजी विचार है!