Monday 28 November 2011

-:बेटी की पुकार :-



यह कविता आज की बेटी की पुकार है ! वो अपनी माँ को कोसती है की मुझे इस समाज मे जन्म दे कर बहुत बड़ी गलती की है !


मैने बेटी बन जन्म लीया,


मोहे क्यों जन्म दीया मेरी माँ


जब तू ही अधूरी सी थी!


तो क्यों अधूरी सी एक आह को जन्म दीया,


मै कांच की एक मूरत जो पल भर मै टूट जाये,


मै साफ सा एक पन्ना जिस् पर पल मे धूल नजर आये,


क्यों ऐसे जग मै जनम दीया, मोहे क्यों जनम दीया मेरी माँ,


क्यों उंगली उठे मेरी तरफ ही, क्यों लोग ताने मुझे ही दे


मै जित्ना आगे बढ़ना चाहू क्यों लोग मुझे पिछे खीचे!


क्यों ताने मे सुनती हू माँ,मोहे क्यों जन्म दीया मेरी माँ?

Thursday 24 November 2011

राजस्थानी विहर गीत


राजस्थानी विहर गीत :- राजस्थान के लोग पुराने ज़माने में व्यापार करने के लिए देश के  दुसरे राज्यों मे जाते थे ! तब उनकी पत्नी  विहर गीत गाती थी ! कभी कारुज़ा को बोलती की की मेरे पिया को संदेसा भिजवाती ! कुछ ऐसा यह गीत है जो अपने पिया को बोलती है की आप परदेश मत जावो
ओजी ओ हदक मिजाजो ओ ढोला
ओजी ओ हदक मिजाजी ओ ढोला
मतना सिधाऔ पूरबियै परदेस
रैवो नै अमीणै देस |
पूरबियै मैं तपै रै तावड़ौ, लूवां लाय लगाय
घूंघट री छांयां कुण करसी, कुण थांनै चँवर डुळाय
ओजी मिरगानैणी रा ढोला, मतना सिधाओ
पूरबियै परदेस, रैवो नै अमीणै देस |
पूरबियै मैं डांफर बाजै, ठंड पड़ै असराळ
सेज बिछा कुण अंग लगासी, पिलँग पथरणौ ढाळ
ओजी पिया प्यारी रा ढोला, मतना सिधाऔ
पूरबियै परदेस, रैवो नै अमीणै देस |
पूरबियै मैं बसै नखराळी, कांमणगारी नार
कांमण करसी मन बिलमासी, झांझर रै झिंणकार
ओजी चन्नावरणी रा ढोला, मतना सिधाऔ
पूरबियै परदेस, रैवो नै अमीणै देस |
चैत महीनै रुप निखरतां, क्यूं छोडौ घरबार
च्यार टकां की थारी नोकरी, लाख टकां की नार
ओजी नणदलबाई रा ओ वीरा, मतना सिधाऔ


पूरबियै परदेस, रैवो नै अमीणै देस |