Tuesday 30 August 2011

बाबा रामदेव का मेला

बाबा रामदेव 
रामदेवरा में प्रतिवर्ष भादवा सुदी दूज से भादवा सुदी एकादशी तक एक विशाल मेला भरता हैं. यह मेला दूज को मंगला आरती के साथ ही शुरू होता हैं. सांप्रदायिक सदभाव के प्रतीक इस मेले में शामिल होने व मन्नतें मांगने के लिए राजस्थान ही नहीं गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा,मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों से भी लाखों की तादाद में श्रद्धालुजन पहुंचते है. कोई पैदल तो कोई यातायात के वाहनों के माध्यम से रामदेवरा पहुंचता है. रुणिचा पहुंचते ही वहा की छठा अनुपम लगती है. मेले के दिनों में "रुणिचा" नई नगरी बन जाता हैं. मेले के अवसर पर जम्में जागरण आयोजित होते हैं तथा भंडारों की भी व्यवस्था होती हैं. इस मेले के अतिरिक्त माघ माह में भी मेला भरता हैं. उसे "माघ मेला" कहा जाता है. जो लोग भादवा मेले की भयंकर भीड़ से ऊब जाते हैं वे "माघ मेले" में अवश्य शामिल होते है तथा मंदिर में श्रद्धाभिभुत होकर धोक लगाते है.
जम्मा जागरण :
जम्मा जागरण रामदेवजी की लीला का बखान करने का सबसे पुराना स्रोत हैं. पुराने समय में बाबा का यशोगान हरजी भाटी }kjk भजनों के माध्यम से किया जाता था. बाबा के जम्मे में रात भर भजनों की गंगा बहती हैं साथ ही गुग्गल धूप एवं अखंड ज्योत भी रात भर प्रज्ज्वलित रहते हैं | रामदेवरा में प्रतिमाह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मंदिर के आगे ही जम्मे का आयोजन होता हैं. जम्मे की सम्पूर्ण व्यवस्था यहाँ के स्थानीय नागरिकों   }kjk की जाती हैं. रात 9 बजे मंदिर के पट्ट बंद होने के बाद से ही यहाँ पर जम्मा शुरू हो जाता हैं जो कि अल सुबह तक चलता हैं. जम्मे में सैकड़ों भक्त रात भर भक्ति सरिता का आनंद लेते हैं. जम्मे में नजदीकी पोकरण शहर के ही भजनगायक भक्तिरस बहा कर सम्पूर्ण वातावरण को भक्तिमय बनाते हैं. कई श्रद्धालु भी अपनी प्रभु भक्ति से प्रेरित होकर बाबा के भजनों पर नाचते झूमते हैं| रामदेवरा में प्रतिवर्ष 31 दिसंबर को नए वर्ष के आगमन की ख़ुशी में अनोपगढ़ से आये भक्तो द्वारा जम्मा आयोजित किया जाता हैं. आज भी बाबा के भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर बाबा के जम्मे का आयोजन करवाते हैं एवं जम्मे में उपस्थित सभी भक्तों की तन मन से सेवा करते है


घोड़लियो
घोड़लियो अर्थात घोडा, बाबा की सवारी के लिए पूजा जाता है कहते है बाबा रामदेव ने बचपन में अपनी माँ मैणादे से घोडा मंगवाने की जिद कर ली थी. बहुत समझाने पर भी बालक रामदेव के न मानने पर आखिर थक हारकर माता ने उनके लिए एक दरजी ( रूपा दरजी) को एक कपडे का घोडा बनाने का आदेश दिया तथा साथ ही साथ उस दरजी को कीमती वस्त्र भी उस घोड़े को बनाने हेतु दिए.घर जाकर दरजी के मन में पाप आ गया और उसने उन कीमती वस्त्रों की बजाय कपडे के पूर( चिथड़े) उस घोड़े को बनाने में प्रयुक्त किये ओर घोडा बना कर माता मैणादे को दे दिया माता मैणादे ने बालक रामदेव को कपडे का घोड़ा देते हुए उससे खेलने को कहा परन्तु अवतारी पुरुष रामदेव को दरजी की धोखाधड़ी ज्ञात थी. अतः उन्होंने दरजी को सबक सिखाने का निर्णय किया ओर उस घोड़े को आकाश में उड़ाने लगे यह देखकर माता मैणादे मन ही मन में घबराने लगी उन्होंने तुरंत उस दरजी को पकड़ कर लाने को कहा दरजी को लाकर उससे उस घोड़े के बारे में पूछा तो उसने माता मैणादे व बालक रामदेव से माफ़ी मांगते हुए कहा कि उसने ही घोड़े में धोखाधड़ी की है ओर आगे से ऐसा न करने का वचन दिया. यह सुनकर रामदेव जी वापिस धरती पर उतर आये व उस दरजी को क्षमा करते हुए भविष्य में ऐसा न करने को कहा इसी धारणा के कारण ही आज भी बाबा के भक्तजन पुत्ररत्न की प्राप्ति हेतु बाबा को कपडे का घोडा बड़ी श्रद्धा से चढाते है |


पैदल चलने की होड़

रामदेवरा (रूणीचा) में प्रतिवर्ष भादवा माह में एक माह तक चलने वाला मेला आयोजित होता है. इस मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते है. ये श्रद्धालु अपने-अपने घरों से बाबा के दरबार तक का सफ़र पैदल तय करते है .कोई पुत्ररत्न की चाह में तो कोई रोग कष्ट निवारण हेतु,कोई घर की सुख-शान्ति हेतु यह मान्यता लेकर की बाबा के दरबार में पैदल जाने वाले भक्त को बाबा कभी खाली हाथ नहीं भेजते यहा पर आते है . पैदल श्रद्धालु अमुमन एक संघ के साथ ही यात्रा करते है और इस संघ के साथ अन्य श्रद्धालु भी मार्ग में जुड़ते जाते है. सभी पैदल यात्री बाबा के जयकारे लगाते, नाचते गाते हुए यात्रा करते है.
 रामदेव जी का परचा :-


माता मैणादे को परचा:- 
भादवे की दूज को रामदेवजी ने जब अवतार लिया तब अजमल जी रानी मेंणावती को यह समाचार सुनाने हेतु गये । रानी ने आकर देखा तो पालने में दो बालक, एक तो वीरमदेव जिन्होंने माता मैणादे की गर्भ से जन्म लिया था और एक रामदेव सो रहे थे । यह देखमाता मैणादे मन ही मन चिंता में पड़ गयी । वे इसे प्रभु की लीला को न समझ कर कोई जादू-टोना समझने लगी । उसी समय बालक रामदेव ने रसोईघर में उफन रहे दूध को शांत करवा कर माता मैणादे को अपनी लीला दिखाई और माता का संशय समाप्त हो गया,उन्होंने ख़ुशी से रामदेव को अपनी गोद में ले लिया । 

 दर्जी को परचा:-
बाबा रामदेव ने बचपन में अपनी माँ मैणादे से घोडा मंगवाने की जिद कर ली थी । बहुत समझाने पर भी बालक रामदेव के न मानने पर आखिर थक हारकर माता ने उनके लिए एक दर्जी (रूपा दर्जी) को एक कपडे का घोडा बनाने का आदेश दिया तथा साथ ही साथ उस दर्जीको कीमती वस्त्र भी उस घोड़े को बनाने हेतु दिए ।घर जाकर दर्जी के मन में पाप आ गया और उसने उन कीमती वस्त्रों की बजाय कपडे के पूर (चिथड़े) उस घोड़े को बनाने में प्रयुक्त किये और घोडा बना कर माता मैणादे को दे दिया । माता मैणादे ने बालक रामदेव को कपडे का घोडा देते हुए उससे खेलने को कहा, परन्तु अवतारी पुरुष रामदेव को दर्जी की धोखधडी ज्ञात थी । अतःउन्होने दर्जी को सबक सिखाने का निर्णय किया ओर उस घोडे को आकाश मे उड़ाने लगे । यह देख माता मैणादे मन ही मन में घबराने लगी उन्होंने तुरंत उस दर्जी को पकड़कर लाने को कहा । दर्जी को लाकर उससे उस घोड़े के बारे में पूछा तो उसने माता मैणादे व बालक रामदेव से माफ़ी माँगते हुए कहा की उसने ही घोड़े में धोखधड़ी की हैं और आगे से ऐसा न करने का वचन दिया । यह सुनकर रामदेव जी वापस धरती पर उतर आये व उस दर्जी को क्षमा करते हुए भविष्य में ऐसा न करने को कहा ।

 मिश्री को नमक बनाया:-
एक समय की बात है नगर में एक लाखु नामक "बणजारा" जाति का व्यापारी अपनी बैलगाड़ी पर मिश्री बेचने हेतु आया । उसने अपने व्यापार से सम्बंधित तत्कालीन चुंगी कर नहीं चुकाया था । रामदेवजी ने जब उस बणजारे से चुंगी कर न चुकाने का कारण पूछातो उसने बात को यह कह कर टाल दिया कि यह तो नमक है, और नमक पर कोई चुंगी कर नहीं लगता और अपना व्यापार करने लगा यह देख कर रामदेव जी ने उस बणजारे को सबक सिखाने हेतु उसकी सारी मिश्री नमक में बदल दी।

थोड़ी देर बाद जब सभी लोग उसको मिश्री के नाम पर नमक देने के कारण पीट रहे थे तब उसने रामदेवजी को याद करते हुए माफ़ी मांगी और चुंगी कर चुकाने का वचन दिया । रामदेवजी शीघ्र ही वहां पहुंचे और सभी लोगो को शांत करवाते हुए कहा कि इसको अपनी गलती का पश्चाताप है, अतः इसे मैं माफ़ करता हूँ, और फिर से वह सारा नमक मिश्री में बदल गया ।



भाभी को परचा
भाई वीरमदेव की धर्म पत्नी अर्थात रामदेवजी की भाभी को एक बछड़ा बहुत ही प्रिय था, लेकिन दुर्भाग्यवश वह बछड़ा किसी रोग से ग्रसित हो कर मर गया ।


रामदेवजी ने जब यह समाचार सुने तब वे अपनी भाभी को सांत्वना देने पहुंचे । भाभी ने रामदेव जी के आते ही उनसे उस मरे हुए बछड़े को जीवित करने के लिए प्रार्थना करने लगी, और कहने लगी कि आप तो सिद्ध पुरुष हो आप मेरे बछड़े को कृपया पुनः जीवित कर दे और अश्रुधारा बहाने लगी ।


रामदेवजी को अपनी भाभी का यह दुःख देखा नहीं गया और उन्होंने पलक झपकते ही उस बछड़े को पुनः जीवित कर दिया । यह देखकर भाभी अति हर्षित हुई और रामदेवजी को धन्यवाद अर्पित करने लगी ।


जाते जाते यह भजन सुनता जोवो  सा .......